ओ कागज की कस्ती ओ बारिश का पानी


ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छिन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन ओ कागज कि कस्ती ओ बारिश का पानी
सच मे बचपन अनूठा होता है उसी की याद मे दो लाइन
आज भी वो बचपन याद आता है
जब चीजे सस्ती थी
कोई भी चीज पाच दस पैसे मे बिकती थी
जेब खर्च पाच पैसा मिलता था
कुछ खर्चा होता कुछ पैसा बचता था
वो बीते दिन याद आते है जब पढाई के साथ मस्ती होती थी
तब फीस भी बीस आने लगती थी
वो दिन गिनते रहते थे जब 3 किलो गेहू मिलते थे
वो पल याद करते है जब मुन्शी जी कहानी सुनाते थे
पढाते कम थे और सोते ज्यादा थे
वो कल याद आता है जब हम बच्चे फटे पुराने कपडो मे नही लजाते थे
बिना चप्पल के भी पढने जाते थे
वो बीते दिन याद करते है जब स्याही और दुद्दी से पटरी पर लिखा करते थे
बैठने के लिए बोरिया भी ले जाते थे
वो दिन को याद करते थे जब उजीफा मुन्शी जी दिलवाते थे 100 रुपये लेकर के
200 हमे थिमाते थे
वो दिन अच्छे लगते थे जब हम छोटे बच्चे थे
वो बचपन याद आते है जब हम छोटे बच्चे थे
दीपक कुमार गुप्ता

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