आजकल मैं कोलकाता मे हु मेरी ये यात्रा थोड़ी छोटी है मतलब 5 से 6 दिनों की पर इतने दिनों मे मैं कोलकाता को पूरी तरह जानने की कोसिस करूँगा
ये मेरी जिंदगी की पहली यात्रा है क्योकि मैं पहले कभी अकेले घर से दूर नही निकला मैं स्टेशन पर पहुचा काफी इंतजार के बाद ट्रेन मिली भरतीय रेल का अजीब है खेल नेता मंत्रियो की तरह कभी टाइम पर नही आती धीरे धीरे ट्रेन आगे बढ़ी उसी के साथ सुरु हुआ मेरी यात्रा धीरे धीरे हम जौनपुर पहुचे जहा का स्टेशन अपनी किस्मत पर रो रहा था आगे बढ़े पहुचे बनारस भोले बाबा की नगरी यह पर हम रात को पहुचे थे आकर्षक लाइटिंग और घाटो की सुंदरता मां गंगा की आरती ने मन मोह लिया पर माँ गंगा की ब्यथा देखकर एक पुत्र का हृदय काप उठा जिसे हम माँ कहते है जो जीवन दायनी है जिससे भारत की पहचान है जो हिंदुत्व के गौरव की पहचान है वही अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है जिस गंगा के जल से तन मन शुद्ध किया जाता है उसी गंगा मे कारखानो और गन्दी नालियो का गन्दा पानी गंगा मे गिराया जा रहा था गंगा सचमुच मैली हो गयी मैं वहा से आगे बढ़ा बिहार यानी लालू की नगरी रात काफी हो गयी थी तो सो गया सुबह जल्दी उठा तो बिहार की की खूबसूरती देखने का मौका मिला और हा मैने तो सुना था की सूरज अरुणाचल प्रदेश मे उगते है पर वही दृश्य मैने बिहार मे देखा यहाँ उचे ऊचे पहाड़ो के बीच से जब सूरज अपनी लाली के साथ धीरे धीरे उगने लगा तो उसकी तस्वीर मैंने कैमरे मे कैद कर ली वैसे इसी बात पर मुझे एक कहावत याद आ गयी जहा बड़े लोग पनीर खाकर पेट भरते है वही छोटे लोग नमक रोटी से काम चला लेते है तो छोटे लोगो के लिए ये ये नमक रोटी हइ सही पर पेट तो भर गया
धीरे धीरे इन छोटे बड़े पहाड़ो को देखते हुए आगे बढ़ रहा था और बसन्ती की गाल वाली ओ सड़क को को खोज रहा था पर दिखी नही शायद लालू उसे गब्बर की मदद से अपने तबेले मे उठा ले गए हो या धर्मेन्द्र उसे छुड़ा कर ले गए होंगे
मैं आगे बढ़ा तो मैने जंगलो के बीच मे एक ओबर ब्रिज देखा पता नही सरकार को क्या जरूरत थी यहा बनाने की वैसे इ भी हो सकेला लालू जी की भैस को आने जाने मे परेशानी होत रही हो
मैं आगे बढ़ता गया तो मैंने देखा की इंसान हैवान बन गया था ओ पहाड़ो को काट रहा था कारखाने लगे थे जिनसे कालाधुँआ निकल तो रहा था विकास के लिए पर हमारा भविष्य कालाकर रहा था मानव ईश्वर की विरासत को मिटाने पर तुला था
आगे मैं कोलकाता पहुचा मैंने कई स्टेशनों पर गरीबी भूख और लाचारी को देखा कही बच्चों को भीख मांगते हुए देखा तो कही बुजुर्गो को मजदूरी करते देखा कही कही पर तो औरतो को आधे कपड़ो मे देखा अपनी किस्मत को कोश रही भूखी माँ को अपने बच्चों के साथ देखा
पर हा यहा पर मुझको इतने झंडे TMC के दिखे जितने लोगो के तन पर कपड़े नही दिखे अगर ममता मे ममता होती तो झंडे छपवाने के बजाय उतने कपड़े गरीबो मे बाट देती तो बेचारो का भला हो जाता चलो जो होता है अच्छे के लिए
जैसे तैसे मैं पहुच गया अपनी मंजिल तक उसी रात यह से कुछ दूरी पर खेसारी लाल आने वाले थे तो मैं भी पहुच गया सुरक्षा बड़ी कड़ी थी पुलिस के बाद ब्लैक कमांडो जो किसी गलि के गुंडे थे उनको बनाया था गीत संगीत का दौर चला खेशारी आये भीड़ उनकी एक झलक के लिए पागल हो गयी थी बंगाली और शराबी ना हो ऐसा कभी हो सकता है पहुच गए धमाल मचाने इससे पहले होता कोई बवाल मैं निकल लिया रूम थोड़ी दूरी पर था सो पैदल ही चल पड़े
रास्ते मे मैंने कूड़े के कई बड़े बड़े ढेर देखे कूड़ा तो कचरो का होता ही है पर उन्ही कुडो मे एक दो आदमी को पड़े देखा जो मोदी के स्वच्छ भारत का मजाक उड़ा रहे थे
अगले दिन मैं हाबड़ा पुल को देखने गया जो कारीगरी की अनूठी मिसाल था मैंने गर्व से अपने मन से कहा की क्या हम भारतीय किसी से कम थोड़े ही है
मेरा अगला दिन माँ ददक्षिणेश्वर काली के दर्शन के लिए निकला 13 किमी के बाद हम वहा पहुचे मन्दिर परिसर की स्वच्छता और उत्तर भारत की कारीगरी आकर्शित कर रही थी माँ काली के दर्शन के पश्चात मैंने कुछ दिन मैं और रुका उसके बाद मैं अपने वतन वापस लौट आया दीपक कुमार गुप्ता
ये मेरी जिंदगी की पहली यात्रा है क्योकि मैं पहले कभी अकेले घर से दूर नही निकला मैं स्टेशन पर पहुचा काफी इंतजार के बाद ट्रेन मिली भरतीय रेल का अजीब है खेल नेता मंत्रियो की तरह कभी टाइम पर नही आती धीरे धीरे ट्रेन आगे बढ़ी उसी के साथ सुरु हुआ मेरी यात्रा धीरे धीरे हम जौनपुर पहुचे जहा का स्टेशन अपनी किस्मत पर रो रहा था आगे बढ़े पहुचे बनारस भोले बाबा की नगरी यह पर हम रात को पहुचे थे आकर्षक लाइटिंग और घाटो की सुंदरता मां गंगा की आरती ने मन मोह लिया पर माँ गंगा की ब्यथा देखकर एक पुत्र का हृदय काप उठा जिसे हम माँ कहते है जो जीवन दायनी है जिससे भारत की पहचान है जो हिंदुत्व के गौरव की पहचान है वही अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है जिस गंगा के जल से तन मन शुद्ध किया जाता है उसी गंगा मे कारखानो और गन्दी नालियो का गन्दा पानी गंगा मे गिराया जा रहा था गंगा सचमुच मैली हो गयी मैं वहा से आगे बढ़ा बिहार यानी लालू की नगरी रात काफी हो गयी थी तो सो गया सुबह जल्दी उठा तो बिहार की की खूबसूरती देखने का मौका मिला और हा मैने तो सुना था की सूरज अरुणाचल प्रदेश मे उगते है पर वही दृश्य मैने बिहार मे देखा यहाँ उचे ऊचे पहाड़ो के बीच से जब सूरज अपनी लाली के साथ धीरे धीरे उगने लगा तो उसकी तस्वीर मैंने कैमरे मे कैद कर ली वैसे इसी बात पर मुझे एक कहावत याद आ गयी जहा बड़े लोग पनीर खाकर पेट भरते है वही छोटे लोग नमक रोटी से काम चला लेते है तो छोटे लोगो के लिए ये ये नमक रोटी हइ सही पर पेट तो भर गया
धीरे धीरे इन छोटे बड़े पहाड़ो को देखते हुए आगे बढ़ रहा था और बसन्ती की गाल वाली ओ सड़क को को खोज रहा था पर दिखी नही शायद लालू उसे गब्बर की मदद से अपने तबेले मे उठा ले गए हो या धर्मेन्द्र उसे छुड़ा कर ले गए होंगे
मैं आगे बढ़ा तो मैने जंगलो के बीच मे एक ओबर ब्रिज देखा पता नही सरकार को क्या जरूरत थी यहा बनाने की वैसे इ भी हो सकेला लालू जी की भैस को आने जाने मे परेशानी होत रही हो
मैं आगे बढ़ता गया तो मैंने देखा की इंसान हैवान बन गया था ओ पहाड़ो को काट रहा था कारखाने लगे थे जिनसे कालाधुँआ निकल तो रहा था विकास के लिए पर हमारा भविष्य कालाकर रहा था मानव ईश्वर की विरासत को मिटाने पर तुला था
आगे मैं कोलकाता पहुचा मैंने कई स्टेशनों पर गरीबी भूख और लाचारी को देखा कही बच्चों को भीख मांगते हुए देखा तो कही बुजुर्गो को मजदूरी करते देखा कही कही पर तो औरतो को आधे कपड़ो मे देखा अपनी किस्मत को कोश रही भूखी माँ को अपने बच्चों के साथ देखा
पर हा यहा पर मुझको इतने झंडे TMC के दिखे जितने लोगो के तन पर कपड़े नही दिखे अगर ममता मे ममता होती तो झंडे छपवाने के बजाय उतने कपड़े गरीबो मे बाट देती तो बेचारो का भला हो जाता चलो जो होता है अच्छे के लिए
जैसे तैसे मैं पहुच गया अपनी मंजिल तक उसी रात यह से कुछ दूरी पर खेसारी लाल आने वाले थे तो मैं भी पहुच गया सुरक्षा बड़ी कड़ी थी पुलिस के बाद ब्लैक कमांडो जो किसी गलि के गुंडे थे उनको बनाया था गीत संगीत का दौर चला खेशारी आये भीड़ उनकी एक झलक के लिए पागल हो गयी थी बंगाली और शराबी ना हो ऐसा कभी हो सकता है पहुच गए धमाल मचाने इससे पहले होता कोई बवाल मैं निकल लिया रूम थोड़ी दूरी पर था सो पैदल ही चल पड़े
रास्ते मे मैंने कूड़े के कई बड़े बड़े ढेर देखे कूड़ा तो कचरो का होता ही है पर उन्ही कुडो मे एक दो आदमी को पड़े देखा जो मोदी के स्वच्छ भारत का मजाक उड़ा रहे थे
अगले दिन मैं हाबड़ा पुल को देखने गया जो कारीगरी की अनूठी मिसाल था मैंने गर्व से अपने मन से कहा की क्या हम भारतीय किसी से कम थोड़े ही है
मेरा अगला दिन माँ ददक्षिणेश्वर काली के दर्शन के लिए निकला 13 किमी के बाद हम वहा पहुचे मन्दिर परिसर की स्वच्छता और उत्तर भारत की कारीगरी आकर्शित कर रही थी माँ काली के दर्शन के पश्चात मैंने कुछ दिन मैं और रुका उसके बाद मैं अपने वतन वापस लौट आया दीपक कुमार गुप्ता
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