कोलकाता का बेलूर मठ अपने आप मे किसी तीर्थ से कम नही है।
स्वामी बिवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की कर्म स्थली के रूप मे इसे जाना जाता है।
हम बेलूर मठ के मुख्य गेट से प्रवेश किये तो हमने देखा चारो तरफ प्राकृतिक सौंदर्य का परिचय देते तरह तरह के बृक्ष और खूबसूरत फूलो की क्यारीया और रंग बिरंगे फूल सुंदरता मे चार चाद लगा रहे थे।
पूरे परिसर मे एक चीज गौर करने लायक थी तो ओ थी। स्वच्छता आखिर सुंदरता स्वच्छता से ही तो आती है।
हम फूलो की बागवानी देखते हुए आगे बढे आगे हमे आजादी के समय की कुछ झाकिया देखने को मिली जिनमे राजा की सवारी बग्घी सैनिक कुम्हार आदि की कृतिया दिखी। सामने एक भब्य बिशाल मन्दिर दिखाई दिया । मन्दिर के शिखर पर स्वर्ण जड़ा गया था जो मन्दिर की सुंदरता को और बढ़ा रहा था। वहा पर जितने भी छोटे बड़े मन्दिर थे सब गुलाबी पत्थर से बने थे।
हम लोग मन्दिर के अंदर प्रवेश किये मन्दिर के अंदर काफी लोग थे। कुछ लोग सफेद वस्त्रो मे बैठे हुए थे और एक साथ श्री राम की तश्वीर के सामने एक साथ एक स्वर मे प्रभु राम की चौपाई कह रहे थे जो अत्यंत मनमोहक था।
हमने एक एक करके उन सभी मंदिरो को देखा और वही से सामने नदी की सुंदरता को देखा ।
वहा पर तरह तरह के लोग तरह तरह की वेशभूषा वाले ब्यक्ति आये हुए थे जो बेलूर मठ की सुंदरता और उसकी संस्कृति को जानने के लिए उत्सुक थे।
सच मे भरतीय संस्कृति भारतीय ससभ्यता अतुलनीय है।
हमारा जीवन धन्य हो गया जो हमने महापुरुषो देवताओ की इस भूमि पर जन्म लिया।
दीपक कुमार गुप्ता
स्वामी बिवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की कर्म स्थली के रूप मे इसे जाना जाता है।
हम बेलूर मठ के मुख्य गेट से प्रवेश किये तो हमने देखा चारो तरफ प्राकृतिक सौंदर्य का परिचय देते तरह तरह के बृक्ष और खूबसूरत फूलो की क्यारीया और रंग बिरंगे फूल सुंदरता मे चार चाद लगा रहे थे।
पूरे परिसर मे एक चीज गौर करने लायक थी तो ओ थी। स्वच्छता आखिर सुंदरता स्वच्छता से ही तो आती है।
हम फूलो की बागवानी देखते हुए आगे बढे आगे हमे आजादी के समय की कुछ झाकिया देखने को मिली जिनमे राजा की सवारी बग्घी सैनिक कुम्हार आदि की कृतिया दिखी। सामने एक भब्य बिशाल मन्दिर दिखाई दिया । मन्दिर के शिखर पर स्वर्ण जड़ा गया था जो मन्दिर की सुंदरता को और बढ़ा रहा था। वहा पर जितने भी छोटे बड़े मन्दिर थे सब गुलाबी पत्थर से बने थे।
हम लोग मन्दिर के अंदर प्रवेश किये मन्दिर के अंदर काफी लोग थे। कुछ लोग सफेद वस्त्रो मे बैठे हुए थे और एक साथ श्री राम की तश्वीर के सामने एक साथ एक स्वर मे प्रभु राम की चौपाई कह रहे थे जो अत्यंत मनमोहक था।
हमने एक एक करके उन सभी मंदिरो को देखा और वही से सामने नदी की सुंदरता को देखा ।
वहा पर तरह तरह के लोग तरह तरह की वेशभूषा वाले ब्यक्ति आये हुए थे जो बेलूर मठ की सुंदरता और उसकी संस्कृति को जानने के लिए उत्सुक थे।
सच मे भरतीय संस्कृति भारतीय ससभ्यता अतुलनीय है।
हमारा जीवन धन्य हो गया जो हमने महापुरुषो देवताओ की इस भूमि पर जन्म लिया।
दीपक कुमार गुप्ता
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