जब डोली धरती

आज 25 अप्रैल को आचनक धरती डोल उठी।एक भूकम्प का झटका महसूस हुआ। जिसे अभी तक खबरों मे सुना था टीवी पर देखा था। आज उसी भूकम्प को मैंने महसूस किया। डर और दहशत क्या होती है उसे आज मैंने महसूस किया
मरने का डर क्या होता है आज सभी ने जाना हर तरफ लोग भागते हुए नजर आये। शायद कोई मरना नही चाहता था।
पर आज एक बार फिर प्रकृति ने हम सब को अपनी ताकत का एहसास दिलाया। की हे मानव तुम्हारे सारे आविष्कार धरे के धरे रह जायेगे। जब तुम मेरा प्रकोप देखोगे।
अब तो सुधर जाओ इंसानो।
हमे प्रकृति से क्षेड़छाड बन्द करनी होगी। पेड़ पौधे नदी पहाड़ झील झरने सब प्रकृति का हिस्सा है इन्हें मत मिटाओ वरना खुद मिट जाओगे
धरती मा के इन आभूषणों को मत नष्ट करो क्योकि धरती है तो हम है।
जब धरा ही नही होगी तो हम कहा होंगे।
जीव जन्तु पेड़ पौधो नदी पहाड़ झील झरने सभी को मिलाकर इस धरा का निर्माण हुआ सभी एक दूसरे से जुड़े हुए है इन सभी से ही प्रकृति मे सन्तुलन बना हुआ है जब हम उसका छरण करते है तब प्रकृति हमे किसी ना किसी तरह से हमे सचेत करती है।
लेकिन इंसान समझे तब ना।
एक दिन इंसान की इन करतूतो का अंजाम बहुत बुरा होगा
प्रकृति के महत्व को समझो
तभी हम बचेंगे।

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