जिंदगी के रंग


लोग कहते है जिन्दगी मे है बहुत से रंग
लेकिन सभी ने छोड दिया मेरा संग
मै बेसहार इन्सान था
और जिन्दगी से परेशान था
इसलिए मैने किया एक फैसला
मै सब कुछ छोड कर मरने चला
किस्मत की तरह जेब भी फटी थी
मेरी जेब मे चवन्नी नही थी
इसलिए मै पहुचा रेलवे स्टेशन पर
जहा पर ट्रेन तो थी
जो 6 घन्टे लेट थी
लेटे लेटे थक गया
तो उठकर चलता बना
देखा नदी तो सोचा दे दे जान
क्योकि हम थे बहुत परेशान
पर नदी का गन्दा पानी देख मन बदल गया
लोगो ने पुछा क्या हुआ
तो मैने कहा आत्महत्या करने का शुभ मुहूर्त हाथ से निकल गया
इसलिए मै घर चला कभी हसते हुए तो कभी रोते रोते
राम तेरी गंगा मैली हो गयी पापियो के पाप धोते धोते

दीपक कुमार गुप्ता

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