अमरनाथ गुफा की कहानी


हिन्दुओ के आराध्य भगवान शिव  की आस्था के साथ जुड़ी पावन श्री अमरनाथ यात्रा करोड़ों शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है ।
जहां महादेव प्रतिवर्ष श्री अमरनाथ गुफा में अपने भक्तों को हिमशिवलिंग के रूप में दर्शन देते हैं। ऐ हिमशिव लिंग स्वयं निर्मित होता है
 इस पवित्र गुफा में हिमशिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ व एक पार्वती पीठ भी हिम से प्राकृतिक रूप में निर्मित होता है। पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को बाबा बर्फानी अमरनाथ स्वामी के दर्शन के साथ-साथ माता पार्वती शक्ति पीठ का भी दर्शन होता है। यहां माता सती के अंग तथा अंगभूषण की पूजा होती है क्योंकि यहां उनके कंठ का निपात हुआ था। पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है।

श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को अमर कथा सुनाई थी। जब भगवान शंकर यह कथा भगवती पार्वती को सुना रहे थे तो वहां एक तोते का बच्चा भी यह परम पवित्र कथा सुन रहा था और इसे सुनकर फिर उस तोते के बच्चे ने श्री शुकदेव स्वरूप को पाया और इसी कारण बाद में मुनि ‘शुकदेव’ के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुए। यह कथा भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर का संवाद है।

गुफा से जुड़े रहस्य

एक बार देवर्षि नारद कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर के धाम पर दर्शनार्थ पधारे और पार्वती जी से बोले, ‘‘देवी! मुझे इस बात का बड़ा आश्चर्य है कि भगवान शंकर के गले में मुंड माला क्यों है?’’

यही प्रश्र पार्वती जी ने भगवान शंकर से किया तो उन्होंंने बताया,‘‘पार्वती! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ है उतने ही मुंड मैंने धारण किए हैं।’’

पार्वती बोली, ‘‘मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, परंतु आप अमर हैं, इसका कारण बताने का कष्ट करें।’’ भगवान शंकर ने कहा, ‘‘यह सब अमर कथा के कारण है।’’

यह सुनकर पार्वती जी के हृदय में भी अमरत्व प्राप्त करने की भावना पैदा हो गई और वह उनसे शिव कथा सुनाने का आग्रह करने लगीं। भगवान शंकर ने बहुत वर्षों तक इसे टालने का प्रयत्न किया, परंतु पार्वती जी के हठ के कारण उन्हें अमरकथा सुनाने को बाध्य होना ही पड़ा। अमरकथा सुनाने के लिए समस्या यह थी कि कोई अन्य जीव इस कथा को न सुने। इसीलिए भगवान शंकर पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का परित्याग करके इन पर्वत मालाओं में पहुंच गए और श्री अमरनाथ गुफा में भगवती पार्वती जी को अमरकथा सुनाई।

श्री अमरनाथ गुफा की ओर जाते हुए वह सर्वप्रथम पहलगाम पहुंचे जहां उन्होंने अपने नंदी (बैल) का परित्याग किया। तत्पश्चात चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील पर पहुंच कर उन्होंने अपने गले से सर्पों को भी उतार दिया। प्रिय पुत्र श्री गणेश जी को भी उन्होंने महागुनस पर्वत पर छोड़ देने का निश्चय किया। फिर पंचतरणी पहुंच कर शिव जी ने पांचों तत्वों का परित्याग किया। सब कुछ छोड कर अंत में भगवान शिव ने इस अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और पार्वती जी को अपने श्रीमुख से अमरकथा सुनाई।

हिम शिवलिंग की पूजा
श्री अमरनाथ यात्रा वर्ष में केवल एक बार श्रावण मास में होती है जो गुरुपूर्णिमा  से रक्षा बंधन तक चलती है परंतु यात्रियों की प्रति वर्ष बढ़ रही संख्या को देखते हुए श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड ने यात्रा की अवधि में बढ़ौतरी कर दी है। प्रतिकूल मौसम के बावजूद बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए प्रति वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

एक दंत कथा के अनुसार रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन भगवान शंकर स्वयं गुफा में पधारते हैं। चातुर्मास की प्रतिपदा को हिमलिंग का निर्माण स्वयं आरंभ होता है और धीरे-धीरे लिंग का आकार धारण करता हुआ पूर्णिमा के दिन पूर्ण होकर अगले दिन से घटने लगता है। अमावस्या या शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को यह लिंग पूर्णत अदृश्य हो जाता है और यह क्रम निरंतर चलता रहता है।

ऐसा भी ग्रंथों में लिखा मिलता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को श्री अमरनाथ की यात्रा में विशेष महत्व मिला।
हर हर हर हर हर महादेव
शम्भु महादेव 

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