मनुष्य का मन अद्भुत है ।वही है रहस्य संसार का और मोक्ष का । पाप और पुण्य बन्धन और मुक्ति स्वर्ग और नर्क सब उसमे ही समाये हुए है। अंधेरा और प्रकाश सब उसी का है उसमे ही जन्म है उसमे ही मृत्यु है। वही है द्वार बाह्य जगत का वही है सीढ़ी अंतस की और उसका ही न हो जाना दोनो के पार हो जाता है।मन सब कुछ है सब उसकी ही लीला कल्पना है। वह खो जाये तो सब लीला बिलीन हो जाती है कल कही यह कहा था कोई पूछने आया मन तो बड़ा चंचल है वह खोये कैसे मन तो बड़ा गन्दा है वह निर्मल कैसे हो- ओशो
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