मुझे अब भी वो याद है बात बचपन की है। रेडियो आकाशवाणी के वाराणसी स्टेशन पर रात के 9:30 पर एक धारावाहिक आता था जिसका नाम था ।
चौराहे पर खड़ा बचपन ।
जिस मे बच्चों की ब्यथा को उनके ऊपर होते जुल्मो का नाट्य रूपांतरण किया जाता था।
बचपन था इसलिये हम उसे कहानी समझ कर बड़े ध्यान से सुनते थे। पर हम इस बात से अंजान थे की वे कहानिया सच है जो हर रोज किसी ना किसी चौराहे पर किसी गलियो मे घटित होती है।
बच्चों की दर्दनाक कहानी का सच क्या था वो भी मुझे धीरे धीरे पता चलने लगा ।
अगर आप को बच्चों की यही कहानी सच मे देखनी हो तो आपके आसपास के शहरों मे दिख जायेगी।
रेलवे की पटरियों पर बोतल बीनते बच्चे, होटलो मे जूठी प्लेटे उठाने वाले बच्चे, बीच चौराहे पर अपंग करके भीख मगने को बिवस बच्चे, आधे कपड़ो मे घरो मे सफाई करते बच्चे सभी इसी कहानी का हिस्सा है।
अमीरो के बच्चों की तरह हमारे आपके बच्चों की तरह उनका भी कुछ सपना होता है। पर कुछ गरीबी से लाचार होकर मेहनत मजदूरी करने को बिवस होते है या कुछ को बिकलांग करके भीख मांगने को बिवश कर दिया जाता है।
बच्चों को बेचा जाता है चौराहे पर
मजदूरी करवाई जाती है चौराहे पर
भीख मंगवाया जाता है चौराहे पर
सफाई करवाई जाती है चौराहे पर
पूरा बचपन बीत जाता है चौराहे पर।
आखिर
चौराहे पर खड़ा बचपन
इस उम्मीद मे है की कब उसका बचपन घरो मे बीते अपनो मे बीते पढ़ाई मे बीते माँ के आँचल मे बीते।
दीपक कुमार गुप्ता
चौराहे पर खड़ा बचपन ।
जिस मे बच्चों की ब्यथा को उनके ऊपर होते जुल्मो का नाट्य रूपांतरण किया जाता था।
बचपन था इसलिये हम उसे कहानी समझ कर बड़े ध्यान से सुनते थे। पर हम इस बात से अंजान थे की वे कहानिया सच है जो हर रोज किसी ना किसी चौराहे पर किसी गलियो मे घटित होती है।
बच्चों की दर्दनाक कहानी का सच क्या था वो भी मुझे धीरे धीरे पता चलने लगा ।
अगर आप को बच्चों की यही कहानी सच मे देखनी हो तो आपके आसपास के शहरों मे दिख जायेगी।
रेलवे की पटरियों पर बोतल बीनते बच्चे, होटलो मे जूठी प्लेटे उठाने वाले बच्चे, बीच चौराहे पर अपंग करके भीख मगने को बिवस बच्चे, आधे कपड़ो मे घरो मे सफाई करते बच्चे सभी इसी कहानी का हिस्सा है।
अमीरो के बच्चों की तरह हमारे आपके बच्चों की तरह उनका भी कुछ सपना होता है। पर कुछ गरीबी से लाचार होकर मेहनत मजदूरी करने को बिवस होते है या कुछ को बिकलांग करके भीख मांगने को बिवश कर दिया जाता है।
बच्चों को बेचा जाता है चौराहे पर
मजदूरी करवाई जाती है चौराहे पर
भीख मंगवाया जाता है चौराहे पर
सफाई करवाई जाती है चौराहे पर
पूरा बचपन बीत जाता है चौराहे पर।
आखिर
चौराहे पर खड़ा बचपन
इस उम्मीद मे है की कब उसका बचपन घरो मे बीते अपनो मे बीते पढ़ाई मे बीते माँ के आँचल मे बीते।
दीपक कुमार गुप्ता
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