आज की भाग दौड़ मे आज की ब्यस्त दिनचर्या मे हम खुद तक सीमित हो गए है ।
यहा तक की अपना घर ही पूरा संसार मालूम होता है पड़ोस मे क्या हो रहा है फला ब्यक्ति के यहा खाना बना की नही गाव मे बूढ़ी माँ कैसी है ये सब दुनियादारी से किसी को कोई मतलब नही पर पहले तो हम ऐसे ना थे क्या पैसे की चकाचौध मे हम आपसी रिश्तो दुनियादारी यहा तक की इंसानियत को भुला बैठे
हम इतने स्वार्थी हो गए की हमने अपनो तक को भुला दिया
पर क्या ये जीना भी कोई जीना है जहा पैसा तो है पर और कमाने की ललक है।
जहा भोजन तो है पर भूख नही।
यहा सब है पर परिवार की कमी है।
अपने तो है पर ओ अपनापन नही है।
शायद हमने पैसे कमाने के लिए सारे रिश्तों को भुला दिया
आखिर वो पैसा किस काम का जो अपनो को पराया कर दे
वो जीना भी क्या जीना जो किसी के काम न आये
आपने लिए जीना कोई जीना है
जीना तो उसे कहते है जो दुसरो के लिए जीते है
दुसरो के लिए जीना ही तो जीवन है।
दीपक की कलम से
यहा तक की अपना घर ही पूरा संसार मालूम होता है पड़ोस मे क्या हो रहा है फला ब्यक्ति के यहा खाना बना की नही गाव मे बूढ़ी माँ कैसी है ये सब दुनियादारी से किसी को कोई मतलब नही पर पहले तो हम ऐसे ना थे क्या पैसे की चकाचौध मे हम आपसी रिश्तो दुनियादारी यहा तक की इंसानियत को भुला बैठे
हम इतने स्वार्थी हो गए की हमने अपनो तक को भुला दिया
पर क्या ये जीना भी कोई जीना है जहा पैसा तो है पर और कमाने की ललक है।
जहा भोजन तो है पर भूख नही।
यहा सब है पर परिवार की कमी है।
अपने तो है पर ओ अपनापन नही है।
शायद हमने पैसे कमाने के लिए सारे रिश्तों को भुला दिया
आखिर वो पैसा किस काम का जो अपनो को पराया कर दे
वो जीना भी क्या जीना जो किसी के काम न आये
आपने लिए जीना कोई जीना है
जीना तो उसे कहते है जो दुसरो के लिए जीते है
दुसरो के लिए जीना ही तो जीवन है।
दीपक की कलम से
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