ओंकार की 19 शक्तियाँ
सारे शास्त्र-स्मृतियों का मूल है वेद। वेदों का मूल गायत्री है और गायत्री का मूल है ओंकार। ओंकार से गायत्री, गायत्री से वैदिक ज्ञान, और उससे शास्त्र और सामाजिक प्रवृत्तियों की खोज हुई।
पतंजलि महाराज ने कहा हैः
तस्य वाचकः प्रणवः। परमात्मा का वाचक ओंकार है।
सब मंत्रों में ॐ राजा है। ओंकार अनहद नाद है। यह सहज में स्फुरित हो जाता है। अकार, उकार, मकार और अर्धतन्मात्रायुक्त ॐ एक ऐसा अदभुत भगवन्नाम मंत्र है कि इस पर कई व्याखयाएँ हुई। कई ग्रंथ लिखे गये। फिर भी इसकी महिमा हमने लिखी ऐसा दावा किसी ने किया। इस ओंकार के विषय में ज्ञानेश्वरी गीता में ज्ञानेश्वर महाराज ने कहा हैः
ॐ नमो जी आद्या वेदप्रतिपाद्या जय जय स्वसंवेद्या आत्मरूपा।
परमात्मा का ओंकारस्वरूप से अभिवादन करके ज्ञानेश्वर महाराज ने ज्ञानेश्वरी गीता का प्रारम्भ किया।
धन्वंतरी महाराज लिखते हैं कि ॐ सबसे उत्कृष्ट मंत्र है।
वेदव्यासजी महाराज कहते हैं कि प्रणवः मंत्राणां सेतुः। यह प्रणव मंत्र सारे मंत्रों का सेतु है।
कोई मनुष्य दिशाशून्य हो गया हो,लाचारी की हालत में फेंका गया हो, कुटुंबियों ने मुख मोड़ लिया हो, किस्मत रूठ गयी हो,साथियों ने सताना शुरू कर दिया हो, पड़ोसियों ने पुचकार के बदले दुत्कारना शुरू कर दिया हो... चारों तरफ से व्यक्ति दिशाशून्य,सहयोगशून्य, धनशून्य, सत्ताशून्य हो गया हो फिर भी हताश न हो वरन् सुबह-शाम 3 घंटे ओंकार सहित भगवन्नाम का जप करे तो वर्ष के अंदर वह व्यक्ति भगवत्शक्ति से सबके द्वारा सम्मानित, सब दिशाओं में सफल और सब गुणों से सम्पन्न होने लगेगा। इसलिए मनुष्य को कभी भी लाचार, दीन-हीन और असहाय मानकर अपने को कोसना चाहिए। भगवान तुम्हारे आत्मा बनकर बैठे हैं और भगवान का नाम तुम्हें सहज में प्राप्त हो सकता है फिर क्यों दुःखी होना?
रोज रात्रि में तुम 10 मिनट ओंकार का जप करके सो जाओ। फिर देखो, इस मंत्र भगवान की क्या-क्या करामात होती है? और दिनों की अपेक्षा वह रात कैसी जाती है और सुबह कैसी जाती है? पहले ही दिन फर्क पड़ने लग जायेगा।
मंत्र के ऋषि, देवता, छंद, बीज और कीलक होते हैं। इस विधि को जानकर गुरुमंत्र देने वाले सदगुरु मिल जायें और उसका पालन करने वाला सतशिष्य मिल जाये तो काम बन जाता है। ओंकार मंत्र का छंद गायत्री है, इसके देवता परमात्मा स्वयं है और मंत्र के ऋषि भी ईश्वर ही हैं।
भगवान की रक्षण शक्ति, गति शक्ति, कांति शक्ति, प्रीति शक्ति, अवगम शक्ति, प्रवेश अवति शक्ति आदि 19 शक्तियाँ ओंकार में हैं। इसका आदर से श्रवण करने से मंत्रजापक को बहुत लाभ होता है ऐसा संस्कृत के जानकार पाणिनी मुनि ने बताया है।
वे पहले महाबुद्धु थे, महामूर्खों में उनकी गिनती होती थी। 14 साल तक वे पहली कक्षा से दूसरी में नहीं जा पाये थे। फिर उन्होंने शिवजी की उपासना की, उनका ध्यान किया तथा शिवमंत्र जपा। शिवजी के दर्शन किये व उनकी कृपा से संस्कृत व्याकरण की रचना की और अभी पाणिनी मुनी का संस्कृत व्याकरण पढ़ाया जाता है।
मंत्र में 19 शक्तियाँ हैं-
रक्षण शक्तिः ॐ सहित मंत्र का जप करते हैं तो वह हमारे जप तथा पुण्य की रक्षा करता है। किसी नामदान के लिए हुए साधक पर यदि कोई आपदा आनेवाली है, कोई दुर्घटना घटने वाली है तो मंत्र भगवान उस आपदा को शूली में से काँटा कर देते हैं। साधक का बचाव कर देते हैं। ऐसा बचाव तो एक नहीं, मेरे हजारों साधकों के जीवन में चमत्कारिक ढंग से महसूस होता है। अरे, गाड़ी उलट गयी, तीन गुलाटी खा गयी किंतु बापू जी ! हमको खरोंच तक नहीं आयी.... बापू जी ! हमारी नौकरी छूट गयी थी, ऐसा हो गया था, वैसा हो गया था किंतु बाद में उसी साहब ने हमको बुलाकर हमसे माफी माँगी और हमारी पुनर्नियुक्ति कर दी। पदोन्नति भी कर दी... इस प्रकार की न जाने कैसी-कैसी अनुभूतियाँ लोगों को होती हैं। ये अनुभूतियाँ समर्थ भगवान की सामर्थ्यता प्रकट करती हैं।
गति शक्तिः जिस योग में, ज्ञान में, ध्यान में आप फिसल गये थे, उदासीन हो गये थे, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये थे उसमें मंत्रदीक्षा लेने के बाद गति आने लगती है। मंत्रदीक्षा के बाद आपके अंदर गति शक्ति कार्य में आपको मदद करने लगती है।
कांति शक्तिः मंत्रजाप से जापक के कुकर्मों के संस्कार नष्ट होने लगते हैं और उसका चित्त उज्जवल होने लगता है। उसकी आभा उज्जवल होने लगती है, उसकी मति-गति उज्जवल होने लगती है और उसके व्यवहार में उज्जवलता आने लगती है।
इसका मतलब ऐसा नहीं है कि आज मंत्र लिया और कल सब छूमंतर हो जायेगा... धीरे-धीरे होगा। एक दिन में कोई स्नातक नहीं होता, एक दिन में कोई एम.ए. नहीं पढ़ लेता, ऐसे ही एक दिन में सब छूमंतर नहीं हो जाता। मंत्र लेकर ज्यों-ज्यों आप श्रद्धा से,एकाग्रता से और पवित्रता से जप करते जायेंगे त्यों-त्यों विशेष लाभ होता जायेगा।
प्रीत
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