नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत का रहस्य


कब तक राज़ रहेगें नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के तथ्य



इस देश में ही क्या , समूचे विश्व में सुभाष चन्द्र बोस के अतिरिक्त शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा जिसकी मृत्यु पर आज तक संदेह बना हुआ है . इस संदेहास्पद स्थिति के साथ - साथ एक विद्रूपता ये है कि देश की आज़ादी के पूर्व से लेकर आज़ादी के बाद अद्यतन भारत सरकार द्वारा किसी भी तरह की ठोस सकारात्मक कार्यवाही नहीं की गई है . हालाँकि तीन - तीन जाँच आयोगों के द्वारा विभिन्न सरकारों ने औपचारिकता का ही निर्वहन किया है और वो भी कुछ जागरूक सक्रिय नागरिकों के हस्तक्षेप के बाद . इस बात को बुरी तरह से प्रसारित करने और एक तरह की सरकारी मान्यता देने के बाद कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में हो गई थी , अधिसंख्यक लोगों द्वारा इसे स्वीकार कर पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा था और ये स्थिति आज भी बनी हुई है . नेता जी की कार्यशैली , उनकी प्रतिभा , कार्यक्षमता , देश के प्रति उनकी भक्ति , निष्ठा को देखने - जानने के बाद उनके प्रशंसकों ने नेता जी की उपस्थिति को विभिन्न व्यक्तियों के रूप में स्वयं से स्वीकार किया है . इसका सशक्त उदाहरण गुमनामी बाबा के रूप में देखा जा सकता है . सुभाष चंद्र बोस

विमान दुर्घटना और मृत्यु का सच

नेता जी की विमान दुर्घटना को लेकर , उनकी मृत्यु को लेकर , मृत्यु की अफवाह के बाद उनके जीवित होने को लेकर , विभिन्न अवसरों पर देश में ही उनके सदृश्य व्यक्तियों के देखे जाने को लेकर निरंतर संदेहास्पद हालात बनते रहे हैं . नेता जी की मृत्यु की खबर और बाद में उनके जीवित होने की खबर के सन्दर्भ में सामने आते कुछ तथ्यों ने भी समूचे घटनाक्रम को उलझाकर रख दिया है . जहाँ एक तरफ नेता जी की मृत्यु एक बमबर्षक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने पर बताई जा रही है वहीं ताईवानी अख़बार ' सेंट्रल डेली न्यूज़ ' से पता चलता है कि 18 अगस्त 1945 के दिन ताइवान ( तत्कालीन फारमोसा ) की राजधानी ताइपेह के ताइहोकू हवाई अड्डे पर कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त नही हुआ था . इसी तथ्य पर ' हिन्दुस्तान टाइम्स ' के भारतीय पत्रकार (' मिशन नेताजी ' से जुड़े ) अनुज धर के ई - मेल के जवाब में ताईवान सरकार के यातायात एवं संचार मंत्री लिन लिंग - सान तथा ताईपेह के मेयर ने जवाब दिया था कि 14 अगस्त से 25 अक्तूबर 1945 के बीच ताईहोकू हवाई अड्डे पर किसी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है . ( तब ताईहोकू के इस हवाई अड्डे का नाम ' मात्सुयामा एयरपोर्ट ' था और अब इसका नाम ' ताईपेह डोमेस्टिक एयरपोर्ट ' है . ) बाद 2005 में में , ताईवान सरकार के विदेशी मामलों के मंत्री और ताईपेह के मेयर मुखर्जी आयोग के सामने भी यही बातें दुहराते हैं . यदि विमान दुर्घटना की बात को और उस दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु की खबर को एकबारगी सत्य मान भी लिया जाए तो उनके अंतिम संस्कार में होने वाली देरी भी उनकी मृत्यु पर संदेह पैदा करती है . भारतीय परम्परा के अनुसार किसी भी शव का अंतिम संस्कार यथाशीघ्र करने की परम्परा है किन्तु नेता जी का अंतिम संस्कार 22 अगस्त को किया गया . नेता जी की मृत्यु को अफवाह मानने वालों का मानना ​​है कि वो शव नेता जी का नहीं वरन एक ताईवानी सैनिक ' इचिरो ओकुरा ' का था जो बौद्ध धर्म को मानने वाला था . बौद्ध परम्परा का पालन करते हुए ही उसका अंतिम संस्कार मृत्यु के तीन दिन बाद नेता जी के रूप में किया गया . इस विश्वास को इस बात से और बल मिलता है कि सम्बंधित शव का अंतिम संस्कार चिकित्सालय के कम्बल में लपेटे - लपेटे ही कर दिया गया थ , जिससे किसी को भी ये ज्ञात नहीं हो सका कि वो शव किसी भारतीय का था या किसी ताईवानी का . मृत्यु प्रमाण - पत्र का दोबारा बनाया जाना भी इस संदेह को पुष्ट करता है कि नेता जी की मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी .

दुर्घटना के बाद नेता जी का प्रवास

अब सवाल ये भी उठता है कि यदि नेता जी उस विमान दुर्घटना में जीवित बच गए थे तो फिर वे गए कहाँ थे ? तमाम वर्ष उन्होंने कहाँ व्यतीत किये ? ये तथ्य सुभाष बोस किसी से भी छिपा नहीं है कि नेता जी का आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना और इटली , जापान , जर्मनी से मदद लेने के पीछे एकमात्र उद्देश्य भारत देश को स्वतंत्र करवाना था . उनकी इन गतिविधियों को ब्रिटेन किसी भी रूप में पसंद नहीं कर रहा था . ऐसे में उसने नेता जी को अंतर्राष्ट्रीय अपराधी घोषित कर दिया था . इधर अंग्रेज भले ही भारत देश को स्वतंत्र करना चाह रहे थे किन्तु वे नेता जी को राष्ट्रद्रोही घोषित करके उनके ऊपर मुकदमा चलाने को बेताब थे . इसके साथ - साथ नेता जी के सहयोगी रहे स्टालिन और जापानी सम्राट तोजो किसी भी कीमत पर नेता जी को ब्रिटेन - अमेरिका के हाथों नहीं लगने देना चाह

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