रहस्य- कातिल चट्टानें


कातिल चट्टानें कहे या अंधविश्वासी पहाड़ या लास्ट डचमैन माइन नामक बेशक अलग अलग है। लेकिन है रहस्यों से घिरी खौफनाक चट्टानें। अमेरिका के फोनेक्स एरिजोना में। इन्ही उची नीची उबड़ खाबड़ चट्टानों के बीच कही छिपी डचमैन खान की खोज में जो कोई जाता है वह इतिहास बन जाता है।

इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है की 1540 के आसपास स्पेनिस आंदोलन कारियों ने कातिल पहाड़ पर निगाह गड़ाई। इससे पहले यहा अपाचे इंडियन्स जनजाति का बोलबाला था। कातिल पहाड़ पर सोने की खान खोजने वाला पहला ब्यक्ति डॉन मिगुएल प्रेरल्टा था।
वह 1845 में कोरोनाडो का खजाना खोजते हुये पहाड़ पर जा पहुचा। बेसुमार सोना लेकर मैक्सिको लौटा तो उसने बताया की एक उची चट्टान अंगुली की तरह ऊपर इसारा कर रही है। इसलिए उसने पहाड़ को  फिंगर आफ गॉड  का नाम दे दिया ।
उधर मैक्सिको में सोने की खान लूटने का भारी बन्दोबस्त होने लगा। इसीलिए स्पेनिस लोगो के बढ़ते कदमो से अपाचे इंडियन बौखला उठे फिर 1848 में प्रेराल्ट को दल बल समेत चट्टान से उखाड़ फेका।
तब से चट्टानों का नाम पड़ गया गोल्ड फिल्ड। उन्होंने महीनो तक सोने की खोज जारी रखी। सोना तो हाथ नही लगा लेकिन 1914 तक स्पेनिस लोगो की हड्डिया जरूर मिलती रही।
अनुमान लगाना तक मुश्किल था की रहस्यमय पहाड़ पर कितने लोग मौत की बाहो में सो गए।

जून 1931 में वाशिंगटन का सरकारी अधिकारी एडोल्फ रुथ खजाने की तलाश में चट्टानों पर चढ़ गया। चढ़ाई के कई दिनों बाद तक वह नही लौटा। तलाशी दस्ते ने खोजी अभियान चलाया। तो उसका कैम्प ज्यो का त्यों मिला लेकिन रुथ गायब था। छह माह बाद ब्लैक टॉप माउंटेन पर रुथ की खोपड़ी मिली।

दिसम्बर 1936 में न्यूयार्क निवासी रोमन ओ हल खजाने की खोज करते करते खाई में गिरने से मौत हो गयी। और 1937 में गाए फ्रिक नामक ब्यापारी चट्टान से फिसल कर गिर गया। उसके पास कच्चे सोने की ईट थी अगले साल वह सड़क किनारे मरा मिला। उसकी लाश के पास ही कच्चा सोना मिला जिसे दुर्घटना माना गया।
फिर जून 1947 में एक प्रास्पेक्टर जेम्स ए कावेरी ने हेलीकाप्टर पर उडान भर के कातिल चट्टान के बीचो बीच गुम ड़चमैन खान की तलाश शुरू की। पाइलट ने उसे रस्सी के सहारे ला बारगे कैनन में उतारा लेकिन तय सुदा वक्त पर कावेरी नही लौटा तो चप्पे चप्पे की तलाशी शुरू हुई बमुश्किल अगली फ़रवरी कावेरी का सिर बगैर कंकाल मिला। कंकाल कम्बल में लिपटा था। खोपड़ी मिली 30 फिट दूर।

अक्टूबर 1960 में पर्वतारोहियो के दल ने सीधी चटटान के नीचे एक सिर रहित कंकाल देखा। खोपड़ी 4 दिन बाद मिली। पाच रोज बाद एक और कंकाल मिला
अगले 15 सालो तक लगातार खजाने की तह तक पहुचने के लिए जय क्लेप् कमरतोड़ मेहनत करता रहा। जुलाई 1976 को उसकी खोज खत्म हो गयी। दरअसल वह खजाने तक नही पहुचा बल्कि वही खत्म हो गया।

तो क्या है कातिल चट्टान मौत दर मौत का रहस्य ??????????
प्रास्पेक्टर जॉय डियरिंग कहते है  ऊपर वाले की दया दृष्टी से कोसो दूर एक बिरानी जगह कह सकते है। तभी तो यहा सालो साल से मंडार रहा है अनहोनी ताकतों का साया जो ले चूका है कई मासूमो को मौत के आगोश में।

रहस्य- कातिल चट्टानें

टिप्पणियाँ