मैं दीपक हु
मेरी कहानी बिलकुल दीपक के ही जैसी है। जब शाम होती है अँधेरा चारो ओर फैलने लगता है । तब लोग दीपक जलाते है । उसी तरह जब किसी पर मुसीबत परेशानी आती है तो वह मेरी मदद मांगता है। जिस तरह दीपक खुद जलकर दुसरो को रोशनी देता है ठीक उसी तरह मैं खुद परेशान होकर खुद मुसीबत में पड़कर उनका साथ देता हूँ । और जब अँधेरा दूर होता है सबेरा हो जाता है तो लोग उस दीपक को बुझा देते है ठीक उसी तरह जब लोगो की परेशानी खत्म हो जाती है तो वे मेरा साथ छोड़ देते है ।
दुःख तो बहुत होता है लेकिन यह सोचकर सन्तोष करना पड़ता है की ईश्वर ने हमारी किस्मत में दुःख ही दिया है ।
और यह ख़ुशी भी होती है की हम दुसरो की मुसीबत में काम तो आते है भले ही ये मतलबी दुनिया वाले उस बात को न समझे। लेकिन जब जब अँधेरा आएगा जब जब मुसीबत पड़ेगी तब तब दीपक की याद जरूर आएगी।
- दीपक कुमार गुप्ता
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