गाय की महिमा


गौ हमारी सभ्यता का मेरुदंड है। गौ हमारी संस्कृति का प्राण है। यह गंगा , गोमती, गायत्री, गीता, गोबर्धन,और गोविन्द की भाँति पवित्र है। गो हमारी संस्कृति की आधारशिला है। गो विहीन भारतीय संस्कृति की तो कल्पना ही नही की जा सकती। गो हमारे देश धर्म और संस्कृति के मान सम्मान ज्ञान और विज्ञानं की सदा से ही अधिष्ठात्री रही है। गोपालन, गोसेवा, गोदान, हमारी संस्कृति की महान परम्परा रही है। गो के समान इस संसार में कोई भी क्षमाशील प्राणी नही है। गौ भौतिक जगत में तो हमारा कल्याण करती ही है और मृत्यु के पश्चात भी हमारे कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। गौ स्वर्ग की सीढ़ी है । गौ समस्त मनोवांछित वस्तुओ को देने वाली है। गौ हमे जीवनदायनि शांति देती है। हमे आरोग्य आनन्द और शांति प्रदान करती है।  गाय सब प्राणियो की माता है। प्रत्येक ब्यक्ति के जीवन में तीन माताये होती है। पहली जन्मदात्री जननी दूसरी गौ माता तीसरी धरती माता। गाय पवित्र होती है। उनके शरीर का स्पर्श करने वाली हवा भी पवित्र हो जाती है। 
भारतीयो की नैतिकता का मूल स्त्रोत गाय ही मानी जाती है। अध्यात्म प्रधान भारत में गोमाता का स्थान देवो से भी अधिक पूजनीय है। सनातन हिन्दू धर्म में तो सुमेरु भूता पुण्यमयी माता के रूप में इसकी पूजा होती है। ऋग्वेद के एक मन्त्र में कहा गया है। गाय खुद्रो की माता वंसुओ की पुत्री आदिति पुत्रो की बहन और अमृत की नाभि अर्थात अमरत्व का केंद्र है। 
महाभारत में सारांश रूप में यह कहा गया है की गाय संसार में सबसे श्रेष्ठ पवित्र मानी जाती है।क्योकि बिना गो दुग्ध घृत के कोई भी यज्ञ प्रवर्तित नही हो सकता। 
गौ के शरीर में सरलता सह्रदयता सरसता क्षमाशीलता आदि अनेक सदगुणों का निवास रहता है। ब्राह्मण की शालीनता देवता का आशीर्वाद और सन्त का स्वभाव हमे केवल गौ में ही एक साथ प्राप्त होता है। गाये जहा स्वय तपोमय है वही अपनी सेवा करने वालो को भी तपोमय बना देती है। 
गाय ही एक ऐसी माता है जिसके दूध से दही से गोबर से मूत्र से चर्म से हड्डी से बाल से और सींगो से अर्थात सभी से संसार का उपकार ही उपकार होता है। 
गाय के देखने से उसके स्वभाव से सूंघने से गोबर की गन्ध से गोमूत्र के पीने से रोग के कीटाणु स्वतः ही नष्ट हो जाते है। शास्त्रो ने गायो को अर्थशास्त्र का प्रमुख आधार बताया है।
गाय से अर्थ धर्म कम और मोक्ष इन चारो की प्राप्ति होती है। कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नही हो सकता । गौ करुणा की प्रतिमूर्ति और त्याग की पराकाष्ठा है।

आध्यात्मिक दृष्टि से गाय का महत्व वर्णनातीत है। प्रजापति ब्रह्मा जगत पालक विष्णु एव देवादिदेव महादेव द्वारा भी गाय की स्तुति की गयी है। गोसेवा से ही भगवान श्री कृष्ण को भगवत्ता महर्षि गौतम कपिल च्यवन सौरभि तथा आपस्तम्ब आदि को परम् सिद्धि एव महाराजा दिलीप को रघु जैसे चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति हुई । 
गौमाता का अवतार मानव कल्याण के लिए हुआ है। 
लक्ष्मी का मूल सर्वदा गाय ही है। गाय में कोई भी पाप नही है। वे अमृत की भण्डार है। गाये समस्त कामनाओ को पूर्ण करने वाली है। उनसे श्रेष्ठ कुछ भी नही है। 
भारत में गाय तथा गोवंस को अवध्य मन जाता रहा है। गो रक्षा भारत के नर नारी सबका सबसे बड़ा कर्तब्य है।
गौ उपकार का प्रतिक है।अतः उसके प्रति नृशंस होना कृतघ्नता और असुरता है  जो लोग स्वार्थ या लोभ के वशीभूत होकर गौओ को कष्ट देते है वे महापापी है। जो गौओ को कसाई के घर पहुचाने में सहयोग देता है वह निश्चय ही नर्क का भागी है। 
जब तक गौ माता की उपेक्षा होगी गो बध बन्द नही होगा देश कभी समृद्ध नही हो सकता।


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