कैंसर समाज पर एक बदनुमा दाग की तरह है। जिससे हर साल लाखो लोग मरते है जिनमे ज्यादातर गरीब तबके के लोग होते है। वे लोग दुःख और गरीबी के अंधकार में डूबे रहते है। उनके पास खाने को दो वक्त का खाना नही होता। तो इलाज कहा से कराते।
एक कैंसर पीड़ित ब्यक्ति का दर्द वही जनता है।
आनन्द अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना की फ़िल्म जो कैंसर ग्रस्त इंसान के तिल तिल मरने की कहानी बताती है। जो जीना तो चाहता है पर जी नही पता ऐ फ़िल्म एक सन्देश भी देती है। जिंदगी बड़ी होनी चाहिये लम्बी नही। जीवन के चन्द पलो में पूरा जीवन जी लो।
आप "आनन्द" एक बार जरूर देखे
ये फ़िल्म एक कहानी है पर इसमें सच्चाई भी है आज भी हमारे बीच ऐसे बहुत से आनन्द मौजूद है जो कैंसर से लड़ रहे है वे जीना चाहते है अपने सपनो को पूरा करना चाहते है पर होता वही है जो नही होना चाहिए।
सरकार और कई गैर सरकारी सस्थाए कैंसर के प्रति लोगो को जागरूक कर रही है। और कैंसर का इलाज मुफ़्त में कर रही है। पर फिर भी कैंसर नासूर बनता जा रहा है इसमें गलती किसकी है। कैंसर जैसी बीमारी ने कितने बच्चों से उनकी खुशिया छीन ली कितने परिवार का आसरा छीन लिया पर कैंसर खत्म होने का नाम नही लेता। हमारी सरकार को इस दिशा में विशेष ध्यान देने की आवशयक्ता है। उन्हें पता होना चाहिए ।
कैंसर से कितने आनन्द मरते है
जिंदगी कैसी है पहेली हाय
कभी ऐ हँसाये
कभी ऐ रुलाए
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