भगवान ने दी भक्त की गवाही

एक गरीब ब्राम्हण ने एक महाजन से कुछ रूपये उधार लिए। वह किस्तो में उधार चुकाता रहा। जब अंतिम क़िस्त रह गयी तब महाजन ने ब्राम्हण को अदालती नोटिस भिजवा दिया की उसने अभी तक उधार चुकता नही किया। इसलिए पूरी रकम ब्याज सहित वापस करे। मामला कोर्ट में पहुचा। कोर्ट में ब्राम्हण ने सारी बात जज को बता दी। जज ने पूछा क्या कोई गवाह है। ब्राम्हण कुछ देर सोच कर बोला हा मेरी गवाही बाके बिहारी देगे। ब्राम्हण ने कोर्ट के सम्मन को बाके बिहारी की मूर्ति के सामने रखा और बोला भगवन् कल आपको गवाही देने आना है। गवाही के दिन सचमुच एक बूढ़ा जज के सामने खड़ा होकर बता गया की पैसे देते समय मैं ब्राम्हण के साथ होता था और फला फला तारीख को रकम वापस की गयी थी। जज ने सेठ का बही खाता देखा तो बात सही निकली। जज ने ब्राम्हण को निर्दोष करार दिया पर उसके मन में उथल पुथल मची रही आखिर वह गवाह कौन था। उसने ब्राम्हण से पूछा। ब्राम्हण ने बताया वह तो सर्वत्र रहता है । इस घटना ने जज को इतना प्रभावित किया की उसने इस्तीफा देकर घर परिवार छोड़कर फकीर बन गया। वर्षो बाद वह बृंदावन लौट आया पागल बाबा के नाम से। पागल बाबा की दिनचर्या में एक अद्भुत बात सामिल थी। वह प्रतिदिन साधू सन्तों के भंडारे की जगह जाते। वहा जूठन बटोरते आधा द्वारिकाधीश को अर्पित करते आधा स्वयं खाते। एक दिन साधुओ ने जानबूझ कर बहुत देर बाद भोजन किया और जूठन भी नही छोड़ा। काफी देर बाद दोपहर को जब पत्तल फेकी गयी तो उसमे थोड़ी थी जूठन नही थी। बाबा ने बडी मुश्किल से पत्तल पोछ पोछ कर थोड़ी जूठन इकट्ठा की। अब तक शाम हो चुकी थी। उन्होंने जूठन उठाई और अपने मुह में डाल ली तभी उन्हें याद आया की आज बाके बिहारी को भोजन अर्पित ही नही किया। अब उनके सामने बिषम स्थिति थी। उन्होंने सोचा भोजन उगल दिया तो अन्न का तिरस्कार होगा और उसे खा भी नही सकते क्योकि प्रभु कोअर्पित नही किया। इसी कशमकश में बैठे रहे और प्रभु को याद करते रहे। पर श्री ठाकुर तो सबकी लाज रखते है। रात को बाल रूप बनाकर उनके पास आये और बोले रोज तो सबका जूठा खिलाते हो आज अपना जूठा खिलाने में संकोच कर रहे हो। प्रभु उनकी गोद में बैठ गए और उनका मुख खोलकर कुछ भोजन निकाला और बड़े प्रेम से खाने लगे।

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