आज मैं मन्दिर के सामने से गुजरा तो मेरे दिमाग में एक सवाल ने जन्म लिया क्या भगवान सचमुच में होते है या फिर ये एक कोरी मनगढ़न्त कल्पना है।
विज्ञान न तो उन्हें नकारता है और न ही स्वीकारता है।
मैंने बहुत खोजा। न तो उनका फेसबुक प्रोफाइल मिला न तो जी मेल अकाउंट मिला न ट्विटर पर फॉलो कर सका गूगल पर सर्च किया पर सन्तोषजनक परिणाम नही मिला।
तभी एक बात मेरे दिमाग में आई की जनसख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। आज एक अरब है तो अगर हम पीछे जाये तो जनसख्या कम मिलती है। जितना ज्यादा पीछे जायेगे कम होती जायेगी।
इस बात को बिज्ञान भी मानता है की जनसख्या आगे बढ़ रही है।
तो हम जितना पीछे जायेगे कम होती जायेगी। कम होते होते। एकदम से पूरी दुनिया में दो लोग बचे। कहि कोई भी नही।
न उनके पहले न उनके बाद।
कोई और नही दोनों आये कहा से कहा से उनकी उत्पत्ति हुई।
बिज्ञान कहता है की मानवो की उत्पत्ति बन्दरो से हुई है ।
तो हम और पीछे चलते है। वहा तक पीछे चलते है। जहाँ केवल दो बन्दर बचते है। तो वे कहा से आये उन्हें किसने पैदा किया।
बिज्ञान ये भी कहता है की सबसे पहले सूक्ष्म जीवो से बन्दरो और अन्य जीवो की उत्पत्ति हुई।
तो आखिर वे सूक्ष्म जीव धरती पर आये कहा से बिज्ञान ऐ भी कहता है की पहले धरती आग का गोला थी बाद में ओ ठण्डी हुई। पेड़ पौधे नदी झील झरने और जीवन की उत्पत्ति हुई पर कहा से जब पृथ्वी आग का गोला थी तो उसमे कोई जीव कहा रहा होगा। तो कहा से आया जीवन।
ये एक सवाल है
ये धरती आसमान चाँद तारे, और सूर्य का चक्कर लगाते ग्रह।
समय समय पर मौसम का बदलना ये नदिया ये झील झरने, ये पहाड़ ये सागर सभी नियम बध्य तरीके से अपना कार्य कर रहे है। पर क्या किसी के आदेश से या फिर स्वय।
पर कुछ हो या न हो कोई तो है जो इस दुनिया को अपने सिस्टम से चला रहा है पर कौन क्या वही भगवान है
हम फिर से वही आ गए जहाँ से शुरू किया था यानि भगवान
ये बात एक रहस्य है
पता नही
हम क्या कभी उस निर्माता को ढूढ पायेगे जिसने हमे बनाया है
जिसकी रचना इतनी सुंदर
ओ कितना सुंदर होगा।
दीपक कुमार गुप्ता
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