हमे याद रखना - दीपक कुमार गुप्ता

हो तेरी दुनिया से दूर होके चले मजबूर हमे याद रखना जाओ कहि भी सनम तुम्हे इतनी कसम हमे याद रखना इस दुनिया में जो भी आया है उसे एक दिन मरना है। पर हम अपनी दुनियादारी स्वार्थ में इतने ब्यस्त हो गए है की हम कभी भी किसी दूसरे के बारे में परोपकार के बारे में नही सोचते। एक दिन मेरे एक परिचित की आचानक मौत हो गयी । दिल मानने को तैयार न था की ओ दुनिया में नही है। पर समय के साथ साथ उसकी यादे धूमिल होती गयी। आज लोग उसे भुला चुके है। एक दिन जब मेरी तबियत आचानक बिगड़ गयी तो मेरे दिमाग में एक बात आई की आज अगर मेरी मौत हो जाती है तो लोग मुझे कुछ दिनों बाद भुला देगे । मैं क्या था कौन था कहा का था। सब भुला देगे इसलिये मैंने सोचा की मैं मरने से पहले अमर होना चाहुगा। अपने बिचारो से अपनी रचनाओ से अपने अनुभवों से। कल को अगर मैं इस दुनिया में रहू या न रहु पर मेरे बिचार हमेशा मुझे जिन्दा रखेगे। इसलिये मैंने ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया। अपने जीवन के सभी उतार चढ़ाव दुःख दर्द यात्रा जानकारी सब ब्लॉग पर लिखने लगा हु। मेरा जीवन एक संघर्ष की तरह था जिसमे सुख भी था और दुःख भी। प्यार भी था और नफरत भी। कुछ पाने की ललक भी थी तो कुछ न पाने का सन्तोष भी था। पर जैसा भी था मेरा जीवन था जीना तो पड़ता ही। एक गरीब परिवार में जन्म हुआ। बचपन में पिता की मौत के बाद हमने घर छोड़ दिया। ननिहाल में बचपन बिता नाना की मौत के बाद माँ ने हमारी हर जरुरतो को पूरा किया जो एक पिता करता। हा कुछ सपने अधूरे रह गए जैसे मैं आगे पढ़ना चाहता था काफी कुछ करना चाहता था। पर सपने अधूरे रह गए। जीवन पथ पर चलते हुए बहुत से लोग मिलते है जिनमे कुछ दोस्त बनते है कुछ दुश्मन बन जाते है। मेरे साथ पढ़ने वाले सभी दोस्त इस दुनिया में खो गए उनका कोई अता पता नही मिला क्योकि उस समय मोबाइल नही था। हा कुछ दोस्त थे जो दिल से जुड़े थे पर वे सभी मुझसे कुछ साल छोटे थे। एक थे शिवम जो की भोपाल में इन दिनों इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। ऐ हमेशा मुझे कुछ करने की सलाह दिया करते थे। पर मैं कुछ अलग करने की सोच रखता था। एक थे शिवानन्द जिनके साथ मेरा अधिकतर समय बीतता था। जीवन के हर पलो में वो मेरे साथ मेरी परछाई बन कर चलता था। तीसरे थे राकेश कुमार सोनी यानि राजू दादा जो की आजकल विजनेश मैन है। कहने को तो ऐ मेरे दोस्त थे केवल नाम के इनके पास मेरे लिए वक्त ही नही था। अगर कभी आते जाते वक्त मुलाकात हो जाती तो कहते की मैं अभी आ रहा हु। लेकिन वे दूसरी ओर निकल जाते। हम खुश थे उनके आने पर भी न आने पर भी । जब मैं दुखी होता कोई परेशानी होती तो मैं आखे बन्द कर दोस्तों के साथ बिताए उन हसीन पलो को याद करता। क्योकि उस समय मेरे साथ वितायें हुए ओ पल जीवन भर तक मेरे साथ है। मेरे दोस्त मेरे पास नही आते शायद इस लिये की कृष्ण कभी भी सुदामा के घर नही गए। पर कुछ भी हो कभी भी कहि भी हम उन्हें याद जरूर आयेगे। दोस्त ना सही उनकी यादे ही। अगर मैं जिन्दा रहा तो आगे फिर लिखूँगा मर गया तो हमे याद रखना हो तेरी दुनिया से दूर होके चले मजबूर हमे याद रखना जाओ कहि भी सनम तुम्हे इतनी कसम हमे याद रखना

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